Wednesday, June 15, 2011

SUNDAY HO YA MONDAY..KABHI NA KHAO ANDE

सण्डे हो या मण्डे, कभी न खाओ अण्डे!

सम्पूर्ण अण्डा - उद्योग बेजुबान मुर्गियों पर अन्तहीन क्रूरता और अत्याचार के आधार पर टिका है. एक दिन के चूजों को निरन्तर उच्च प्रोटिन - युक्त आहार (मांस, भोजन, हड्डी भोजन, मछली खाना, सोयाबीन, मक्का आदि) खिलाकर शीघ्र जवान बनाया जाता है. फिर उन्हें भीड़ - भरे, बदबूदार, जालीदार फर्श वाले मुर्गीखानों में, मालगोदाम की तरह ठूंस - ठूंस कर रखा जाता हैं (20x20 इंच लम्बे - चौड़े पिंजरों में चार या पांच मुर्गी). ऐसी दर्दनाक स्थिति में दिन रात रहने से मुर्गियाँ पागल होकर चीखती हैं, चिल्लाती हैं, पंख नोचती हैं और एक दूसरे को मार डालने व कच्चा ही खा डालने की कोशिश करती हैं. इस परिस्थिति में निबटने के लिए फैक्ट्री वाले लोहे के गर्म ब्लेड से उनकी चोंच काट देते हैं. घोर हताशा में जब वे पंजों से लड़ती हैं तो उनके पंजे भी काट दिए जाते हैं.
वजन बढ़ाने व अधिक अण्डे देने के लिए मुर्गीदाने में शुरू से आखिर तक सल्फा दवाओं, आर्सैनिक कम्पाउण्ड, हार्मोनवर्धक व न्यूट्रोफुरान दवाओं तथा एण्टीबाइटिक दवाओं का भरपूर प्रयोग किया जाता है. एक मुर्गी की पूर्ण आयु 10 से 12 वर्ष तक होती है. पर 6 मास के होते - होते वह अण्डा देने लगती है, डेढ़ साल तक वह अण्डे देती है, फिर दो वर्ष की होने पर उसे कटने के लिए होटलों और कत्लखानों में सप्लाई कर दिया जाता है.
कई भोले - भाले लोग अण्डे को शाकाहारी, मशीनी, निर्जिव या 'राम लड्डू' कहते हैं, पर तथ्य ये नहीं है. शाकाहार वह है, जो पेड़ - पौधों के ऊपर लगे. पर अण्डा तो मुर्गी के योनिमार्ग से पैदा होता है. वह उसका तरल गर्भ है, गर्भ - रस है और अपरिपक्व भ्रूण है. मुर्गी अण्डाश्य से निकली जीवित कोशिका बढ़कर अण्डा बनती है. इसके खोल में 25 से 30 हजार तक सूक्ष्म छिद्र होते हैं, जिनसे यह ऑक्सीजन लेता है और कार्बनडाइआक्साइड छोड़ता है. 300 ऊपर तापमान में रखे जाने पर यह सड़ने लगता है. प्रत्येक सौ ग्राम अण्डा खाने से खून 450 से 500 मिलीग्राम में. तक कोलैस्ट्रोल की वृद्धि होती है, जिससे हृदय - रोग, उच्च रक्तचाप एग्जिमा, एलर्जी, कब्ज, पेचिश, आँतों की सड़न, एसिडिटी जैसी बीमारियाँ जन्म लेती हैं. क्या अण्डा खाने से पहले आपने कभी इन बातों के बारे में सोचा हैं?

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